Thursday, December 31, 2009

ग़ज़ल

ख्वाब महलों के हमने सजाये नहीं
फिर भी कुटियों के अधिकार पाये नहीं

इस जहाँ में वो दौलत है किस काम की
जो कि मुहताज के काम आये नहीं

जिन दरख्तों की छाया में सपने पले
उनको श्रद्धा के अक्षत चढ़ाये नहीं

कामयाबी का सूरज मिले न मिले
हमने आशा के दीपक बुझाये नहीं

ज़ुल्म से टूटकर हम बिखर तो गये
किन्तु अन्याय को सिर झुकाये नहीं

अपनी खुददारियों को सलामत रखा
आंख से अपनी आंसू गिराए नहीं

उनको सुख-शांति के फल कहाँ से मिलें
प्रेम के वृक्ष जिनने लगाये नहीं

आचार्य भगवत दुबे
mob. 09300613975

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