ख्वाब महलों के हमने सजाये नहीं
फिर भी कुटियों के अधिकार पाये नहीं
इस जहाँ में वो दौलत है किस काम की
जो कि मुहताज के काम आये नहीं
जिन दरख्तों की छाया में सपने पले
उनको श्रद्धा के अक्षत चढ़ाये नहीं
कामयाबी का सूरज मिले न मिले
हमने आशा के दीपक बुझाये नहीं
ज़ुल्म से टूटकर हम बिखर तो गये
किन्तु अन्याय को सिर झुकाये नहीं
अपनी खुददारियों को सलामत रखा
आंख से अपनी आंसू गिराए नहीं
उनको सुख-शांति के फल कहाँ से मिलें
प्रेम के वृक्ष जिनने लगाये नहीं
आचार्य भगवत दुबे
mob. 09300613975
Thursday, December 31, 2009
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