Thursday, December 31, 2009

ग़ज़ल

बस परोसें वेदनाएं क्या हुआ मानव तुझे
मर रही है संवेदनाएं क्या हुआ मानव तुझे

फेक आया पहले ही आदर्श की गठरी कहीं
कोरी करी कल्पनाएँ क्या हुआ मानव तुझे

मांगता हर एक से ही भाग खुल जाते तिरे
द्वारे द्वारे याचनाएं क्या हुआ मानव तुझे

इस क्षणिक जीवन के प्रति लालसा में आ गया
लाखों पाले कामनाएं क्या हुआ मानव तुझे

ये है हिन्दू वो है मुस्लिम और कोई सिख ईसाई
ऐसी कुलषित भावनाएं क्या हुआ मानव तुझे

जन्म मानव का लिया है कार्य तेरे दानवी
आगे पीछे वासनाएं क्या हुआ मानव तुझे

द्वेष घृणा मर्म जीवन का यही क्या रह गया
ऐसी दूषित धारणाएं क्या हुआ मानव तुझे

था अहिंसा का पुजारी क्यों तू हिंसक बन गया
देता है बस तारणाएं क्या हुआ मानव तुझे

आया था आराधना को बन गया भगवान ख़ुद
होती पूजा अर्चनाएं क्या हुआ मानव तुझे

दीन दुखियों के य अब कोई काम आता है 'मुबीन'
बदली है सब धारणाएं क्या हुआ मानव तुझे

मुबीन अहमद सिद्दीक़ी 'कोंचवी'
mob. 09935382154

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