मयख़ाने में जिनने हरदम पैमाने छलकाये हैं
उन्हीं अमीरों ने भूखों के मुंह के कौर छिनाये हैं
ठुकराया जाता है जिनकी चौखट पर खुद्दारों कों
नाक रगड़कर वही भटोंतों ने जयगान सुनाये हैं
बढ़ती मंहगाई ने हमको अब इतना लाचार किया
दीवाली की रातों में भी जल्दी दीप बुझाये हैं
इत्तफाक़ से कभी तुम्हारी चर्चा जब छिड जाती है
बेमौसम मेरी आँखों में तब सावन घिर आये हैं
भीतर-भीतर जाने कितने दर्द समेटे बैठे हैं
उनका मन रखने ऊपर से हम हरदम मुस्काये हैं
हर चुनाव में हमीं गरीबों को उनने आगे रक्खा
बना पोस्टर दीवारों पर हमीं गए चिपकाये हैं
बेटों को बाहर भेजा है इच्छा के विपरीत मगर
उनके जाते ही माँ ने टप-टप आंसू टपकाये हैं
आचार्य भगवत दुबे
mob. 9300613975
Thursday, December 31, 2009
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