Saturday, December 26, 2009

मुक्तक

अमल जो भी करेंगे हम , इसी पर फैसला होगा
सही क्या है , ग़लत क्या है , हमें यह सोचना होगा

भलाई गर किये हम कुछ , हमारा भी भला होगा
बुरा कुछ भी करेंगे तो , हमारा ही बुरा होगा

उबारा है उसे ख़ुद उसकी मेहनत और मशक्कत ने
कभी सोचो कि कितना वो , बियाबाँ में चला होगा

फरेबो - मक्र , खुदगर्ज़ी , हसद में सब यूँ गाफिल हैं
ख़ुदा जाने इबादत में कोई भी मुब्तिला होगा

अमीरों की ही सुनते हैं , अलम्बरदार धर्मों के
गरीबों का रहा शायद अलग कोई ख़ुदा होगा

निगाहे मेहरबां तेरी फरासत बनकर आनी है
न जाने आसमां सर पर मेरे कैसे सधा होगा

हमारी तंगदस्ती और ये दुनिया भर की नासाज़ी
'समीर' अपने मुक़द्दर में यही शायद लिखा होगा

पंडित मुकेश चतुर्वेदी 'समीर'
mob. 09926359533, 09301818437

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