हरयाली है जंगल-जंगल
महक रही है कोपल-कोपल
जाने बहारां मेरे दिलबर
आ जा दिल है बेकल-बेकल
रूप है तेरा चंदा-चंदा
तन है तेरा मख़मल-मख़मल
मख़मल जैसा तन ये तेरा
महके जैसे संदल-संदल
हिरनी जैसी आँखे तेरी
होंठ गुलाबी कोमल-कोमल
घुंघरू जैसा लहजा तेरा
बातें तेरी शीतल-शीतल
हंसती हो जब जाने तमन्ना
बजती जैसे पायल-पायल
देख के तेरी जुल्फे अम्बर
घिर आए हैं बादल-बादल
हाय 'कमर' अब दीवाने भी
कहते मुझको पागल-पागल
मोहम्मद सिद्दीक 'कमर'
Thursday, April 9, 2009
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