Thursday, April 9, 2009

हरयाली है जंगल-जंगल

हरयाली है जंगल-जंगल
महक रही है कोपल-कोपल

जाने बहारां मेरे दिलबर
आ जा दिल है बेकल-बेकल

रूप है तेरा चंदा-चंदा
तन है तेरा मख़मल-मख़मल

मख़मल जैसा तन ये तेरा
महके जैसे संदल-संदल

हिरनी जैसी आँखे तेरी
होंठ गुलाबी कोमल-कोमल

घुंघरू जैसा लहजा तेरा
बातें तेरी शीतल-शीतल

हंसती हो जब जाने तमन्ना
बजती जैसे पायल-पायल

देख के तेरी जुल्फे अम्बर
घिर आए हैं बादल-बादल

हाय 'कमर' अब दीवाने भी
कहते मुझको पागल-पागल

मोहम्मद सिद्दीक 'कमर'

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