हो गई देश भक्ति उसी दिन नगन
जब तिरंगे का बगुलों पे डाला कफ़न
दब गए चरखा तकली घोटालों तले
पहले जैसा नहीं बापू तेरा वतन
शान्ति-सुख के पुजारी जो कहलाते थे
पांच दशकों में वो ला न पाये अमन
'स्वर्ण तिथियों' पे दारू की नदियाँ बहीं
अफसराओं सा नाचा घोटालों का धन
जाहिलों को अगर चुनके लाओगे तुम
रो के कहती है धरती बिकेगा गगन
मिलके नेता सभी एक दिन देखना
पहले ईमान फिर बेच देंगे वतन
उनकी आंखों में रहती है नफरत 'उमा'
जिनका होता नहीं है मुहब्बत का मन
उमाश्री
Sunday, April 26, 2009
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