झूंठी रस्मों के तोड़कर ताले
आ भी जा मुझको चाहने वाले
हमने जितने भी ख़्वाब देखे थे
किसने आंखों में क़त्ल कर डाले
कौन बनवा सकेगा ताजमहल
अब कहाँ ऐसे चाहने वाले
बुलबुले ही नहीं हैं पानी पर
ये हैं दरिया के जिस्म पर छाले
हर तरफ़ झूंठ की हुकूमत है
सच के होंठों पे लग गए ताले
अब तो उनको ही डस रहे हैं 'उमा'
जिन सपेरों ने सांप थे पाले
उमाश्री
Sunday, April 26, 2009
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