मंद मधुर मुस्कान तुम्हारी, मोहित करती मन को
नयनों की मूक भाषा प्रेम सिखाती है जीवन को
रजनीगंधा की देह तुम्हारी, म्रगनयनी से नयन
केशपाश मेघ बन बरसे , व्याकुल तन आलिंगन को
सुबह की लाली अधरों पे खिले पुष्प सा तेरा यौवन ,
चंद्र किरण के रथ पर बैठ मन तोडे हर एक बंधन को
स्मृतियों के वातायन से रोम-रोम करे पूजा-अर्चन
नूतन मिलन की बेला में, मन-भ्रमर व्याकुल गुंजन को
अनुपम छवि तेरे रूप की, लज्जित हो जाए दरपन
हर साँस मदिरा का वास छेडे आती-जाती पवन को
आएगी न विरह की बेला 'कमल' देता है ये वचन
स्नेहिल सन्निध्य तुम्हारा, दूर करे हर उलझन को
सुधीर खरे 'कमल'
Wednesday, April 22, 2009
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