हम दिल के हांथों ऐसे मजबूर हो गये
हम ख़ुद से दूर दूर बहुत दूर हो गये
ना दिन का चैन है, न रातों में है क़रार
ना ज़िन्दगी से प्यार है, सांसों से नहीं प्यार
इस तरह कोई कैसे गुज़ारे तमाम उम्र
जब ज़िंदगी ही ख़ुद से हो जाये है बेज़ार
ढ़ो-ढ़ो के ज़िंदगी को चूर-चूर हो गए
हम ख़ुद से दूर...................................
किस किस ने खेला दिल से कैसे बताएं हम
इस ग़म के साज़ उसको, कैसे सुनाये हम
ज़ख्मी है दिल को चीर के कैसे दिखाएं हम
इक ज़ख्म हो तो ठीक है, कितने गिनाए हम
वो ज़ख्म पुराने अब, नासूर हो गये
हम ख़ुद से दूर...................................
न ख़त्म होने वाला, अब इंतजार है
वो जानते है बेहद हमें उनसे प्यार है
तन्हाइयां तक़दीर में लिख दी नसीब ने
करता है ज़ुल्म और न वो शर्मसार है
गैरों को छोडिये अपने ही काफूर हो गये
हम ख़ुद से दूर...................................
हम दिल के हांथों ऐसे मजबूर हो गये
हम ख़ुद से दूर दूर बहुत दूर हो गये
मज़हर अली 'क़ासमी'
Saturday, April 25, 2009
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